क्या उसकी बहुत 'दीपक' तुझे याद आती है।। @दीपक शर्मा
जब भी कोई बात डंके पे कही जाती है।
ना जाने क्यों ज़माने को अख़र जाती है।।
झूठ कहते हैं तो मुज़रिम करार देते हैं।
सच कहते हैं तो बगावत की बू आती है।।
फ़र्क कुछ नहीं है अमीरी और ग़रीबी में ।
ग़रीबी रोती है , अमीरी छटपटाती है.।।
अम्मा ! मुझे चाँद नही एक रोटी चाहिऐ।
बिटिया ग़रीब की रह-रह के बुदबुदाती है।।
उधर सो गई फुटपाथ पर थककर मेहनत।
इधर नींद की खातिर हवेली कसमसाती है।।
बता हर वक़्त क्यों आँख से आँसू रिसते हैं।
क्या उसकी बहुत 'दीपक' तुझे याद आती है।।
@दीपक शर्मा
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