बहिन , बेटी, बीबी , माँ , न जाने क्या क्या ------- *डॉ. दीपक शर्मा *

 उमर  के  साथ  साथ   किरदार  बदलता  रहा                                                                                शख्सियत  औरत  ही रही  प्यार बदलता  रहा।


बहिन , बेटी, बीबी ,  माँ , न  जाने  क्या  क्या 
चेहरा  औरत  का दहर  हर बार बदलता रहा।

हालात ख्वादिनों के कई सदियां न बदल पाईं
बस सदियाँ बदलती रहीं, संसार बदलता रहा।

प्यार,चाहत ,इश्क,राहत ,जानेमन जाने-हयात 
मतलब सबका एक रहा,मर्द बात बदलता रहा।

आदमी बोझ कोई एक लम्हा उठा सकता नहीं
पर कोख़ में ज़िस्म महीनों आकार बदलता रहा।

सियासत में, वज़ारत में ,तिजारत में,या जंग में
औरत  बिकती  रही  बस बाज़ार बदलता रहा।

कब तलक बातों से ही दिल बहलाओगे बता दो
क़रार कोई दे न सका रोज करार बदलता रहा।

सिवाय आस के 'दीपक' न  कुछ  दे सका दहर
ऐतबार  किस  पर  करें  ऐतबार  बदलता  रहा।

*डॉ. दीपक शर्मा *

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