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Showing posts from May, 2024

जाने किस लोक में जाकर गौरैया खो गयी ----------*डॉ. दीपक शर्मा*

  जाने किस लोक में जाकर गौरैया खो गयी                                                                                           सूने आँगन हुए घर सूनी दिवरिया हो गयी। दरख़्त की डालियाँ  पत्तियाँ उदास बैठी हैं भोर की मौसिकी संग ले चिरइया जो गयी।  शहर में दीखतीं  गौरैया  फ़क़त तस्वीरों में  कुँवारे गाँव में ज्यों ब्याही बहुरिया हो गयी। हम ही मुज़रिम हैं जो हमनें नस्ल तमाम की ख़त्म कई क़िस्म परिन्दों की भईया हो गयी। नज़र इंसान की जिस पर पड़ी उजाड़ दिया नज़र इन्सान की शनिचर की ढैय्या हो गयी। परिंदे घर के आँगन में उतरने से भी डरते हैं छज्जे बेनूर दीपक बेरौनक देहरिया हो गयी। *डॉ. दीपक शर्मा*

बहिन , बेटी, बीबी , माँ , न जाने क्या क्या ------- *डॉ. दीपक शर्मा *

 उमर  के  साथ  साथ   किरदार  बदलता  रहा                                                                                 शख्सियत  औरत  ही रही  प्यार बदलता  रहा। बहिन , बेटी, बीबी ,  माँ , न  जाने  क्या  क्या  चेहरा  औरत  का दहर  हर बार बदलता रहा। हालात ख्वादिनों के कई सदियां न बदल पाईं बस सदियाँ बदलती रहीं, संसार बदलता रहा। प्यार,चाहत ,इश्क,राहत ,जानेमन जाने-हयात  मतलब सबका एक रहा,मर्द बात बदलता रहा। आदमी बोझ कोई एक लम्हा उठा सकता नहीं पर कोख़ में ज़िस्म महीनों आकार बदलता रहा। सियासत में, वज़ारत में ,तिजारत में,या जंग में औरत  बिकती  रही  बस बाज़ार बदलता रहा। कब तलक बातों से ही दिल बहलाओगे बता दो क़रार कोई दे न सका रोज करार बदलता रहा। सिवाय आस के 'दीपक' न  कुछ  दे...

"दीपक" पढ़के ग़ज़ल तेरी लूटीं कई शायरों ने महफ़िल

  बहुत  टूटा , बहुत संभला सांचे मे ढल नहीं पा या                                                        समुंदर मे  भी दलदल थी किनारा मिल नहीं पाया । चिराग़ों की तरह जलना नहीं  है सबकी किस्मत में सूरज ने लाख चाहा पर  दीये सा जल नहीं पाया । नीयत  इंसान  का  गहना ,ज़ेवर  ईमान  होता है  फ़क़त ग़ैरत वो सोना है जो कभी गल नही पाया । हवस के दरिया में  पानी  से  ज़्यादा गहरी काई है जो एक बार फिसला वो कभी संभल नहीं  पाया । सच्ची कोशिश कभी ज़ाया नहीं होती कोई 'दीपक ' ये बात और है मेहनत के जितना फल नहीं पाया । दीपक पढ़के ग़ज़ल तेरी लूटीं कई शायरों ने महफ़िल हमने उनके कलामों  में ज़रा  भी असल  नहीं पाया। ​* डॉ दीपक शर्मा *

वोट तेरा मुल्क़ की तस्वीर बदल सकता है सुन @ Dr. Deepak Sharma

  वोट  तेरा  मुल्क़ की तस्वीर बदल सकता है सुन सोचना फिर डालना तक़दीर बदल सकता है सुन। जो  चाहता  नस्लें  तेरी  फूलें फलें आबाद रहें लिख्खें पढ़ें आगे बढ़ें  ख़ुशहाल हो आजाद रहें मायूसियों से पिंड छूटे सिगरा कुनबा शाद रहे तू सही मतदान से निज पीर बदल सकता है सुन।  घर मिलें  सड़कें मिलें  पानी मिले बिजली मिले भोजन मिले ईधन मिले सस्ती दवा असली मिले  हो माफ़िया का ख़ात्मा गर्दन कटी  मसली मिले अपने मत अधिकार से जागीर बदल सकता है सुन। हम फ़र्श  से  ले अर्श तक आएं है  तेरे  वोट से  ताक़त नहीं इतनी किसी में देखे हमको खोट से अब विश्व में व्यापार होता भारत की मुद्रा नोट से स्वर्णहार में तू वोट से ज़ंज़ीर बदल सकता है सुन। देख  चाहता  है तरक़्क़ी  वोट तू देना तू ज़रूर देश  रखना सबसे पहले  बाद में मज़हब हुज़ूर  कल तुझे  ख़ुद अपने ऊपर  देखना होगा गुरुर  तेरा फ़ैसला ही मुल्क़ की तासीर बदल सकता है सुन। @ दीपक शर्मा