जाने किस लोक में जाकर गौरैया खो गयी ----------*डॉ. दीपक शर्मा*
जाने किस लोक में जाकर गौरैया खो गयी सूने आँगन हुए घर सूनी दिवरिया हो गयी। दरख़्त की डालियाँ पत्तियाँ उदास बैठी हैं भोर की मौसिकी संग ले चिरइया जो गयी। शहर में दीखतीं गौरैया फ़क़त तस्वीरों में कुँवारे गाँव में ज्यों ब्याही बहुरिया हो गयी। हम ही मुज़रिम हैं जो हमनें नस्ल तमाम की ख़त्म कई क़िस्म परिन्दों की भईया हो गयी। नज़र इंसान की जिस पर पड़ी उजाड़ दिया नज़र इन्सान की शनिचर की ढैय्या हो गयी। परिंदे घर के आँगन में उतरने से भी डरते हैं छज्जे बेनूर दीपक बेरौनक देहरिया हो गयी। *डॉ. दीपक शर्मा*